Tuesday, 11 October 2011

चोरी

चोरी


बीस वर्ष की मुनिया फूट-फूट कर रो पडी। उसका बापू और उसकी मां उसे लगातार समझा रहे थे कि साइकिल चोरी हो गई तो क्या दूसरी आ जाएगी, परंतु वह लगातार रोए जा रही थी। वह उनके आश्वासन के प्रति आश्वस्त नहीं थी। उसे संभवत: इस बात का आभास था कि अब फिर से साइकिल नहीं आने वाली और इसलिए वह रो रही थी। उसके बापू ने आकाश की ओर देखा और निराश होकर बाहर चला गया तो उसकी मां ने उसे क्रोध में आ कर पीट दिया। तमाचा खा कर वह शांत हो गई और मां ने बिगडते हुए कहा- बहुतों को साइकिल नहीं मिली है तो वे क्या स्कूल नहीं जातीं?.. पढना है तो पढ, नहीं पढना है तो मत पढ। हम गरीबों के सपने कभी भी पूरे नहीं होते। आंसू बहाना बंद कर। स्कूल से ही तो मिली थी, भाग्य में नहीं थी,- चली गई। जब साइकिल नहीं मिली थी तो भी तो स्कूल जाया करती थी। समझ ले नहीं मिली और जा। वैसे भी पढ-लिखकर क्या करेगी?- कौन सी तुझे नौकरी करनी है, बाबूगिरी करनी है? चूल्हा-चौका ही तो करना है। ...

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