Sunday, 21 August 2011

नक्सल क्षेत्र में आस्था दे रही कल्प वृक्ष


औरंगाबाद से प्रिन्स कुमार 
कुटुम्बा प्रखंड के नक्सल प्रभावित परता गांव में कल्प वृक्ष आस्था दे रही है। बिहार एवं झारखंड राज्य के श्रद्धालुओं के लिए यह वृक्ष आस्था एवं विश्वास का प्रतीक है। प्रत्येक दिन वृक्ष के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। भयमुक्त होकर श्रद्धालु परता धाम पहुंचते हैं और कल्प वृक्ष का दर्शन कर अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं। प्रत्येक दिन 20 लीटर दूध से इस वृक्ष की पटवन की जाती है। करीब पांच सौ वर्ष पुरानी इस वृक्ष की प्रजाति और कहीं नहीं पाई गई है। बोधि वृक्ष की तरह इसे संरक्षण की आवश्यकता है। वृक्ष के पुजारी नागा गणेश दास बताते हैं कि 1947 के पहले वृक्ष सूख गया था परंतु तब के रहे माताजी ने इस वृक्ष को दूध से पटवन कर हरा किया। दूध से पटवन नहीं होने पर वृक्ष के पत्ते झड़ने लगते हैं। कहते हैं कि इस वृक्ष की महत्ता यह है कि जो मांगिए जो मिलता है। पुजारी कहते हैं कि स्वर्ग का वृक्ष धरती पर लहरा रही है और श्रद्धालुओं को मन्नतें पूरी कर रही है। कहते हैं कि इस वृक्ष को भगवान श्रीकृष्ण द्वापर में स्वर्ग से धरती पर लाया था। पुजारी की माने तो बिहार ही नहीं पूरे देश में यह वृक्ष यहां के अलावा और कहीं नहीं पाई गई है। वृक्ष का एक भी बीज कहीं अंकुरण नहीं लिया है। कहते हैं कि इस वृक्ष की पहचान पांच सौ वर्ष पहले हरे राम ब्रह्ममचारी जी ने किया था। उस समय बंगाली राज का साम्राज्य कायम था। बंगाली राज के उतराधिकारी श्यामजी ने कल्प वृक्ष के बगल में रामजानकी मंदिर का निर्माण कराया और 85 बिगहा जमीन दान में दी। आज यह जमीन परता मठ से बेदखल हो गया है और कई लोग इस पर कब्जा कर लिए हैं।

No comments:

Post a Comment